The 25th Hour

..After Night Before Dawn

मेरे शहर में अब शोर नही होता


मेरे शहर में अब शोर नही होता

अब बच्चे गलियों में खेला नही करते
अब घरों के शीशे टूटा नही करते
पहले आती थीं माओं की डाँटने की आवाज़
पर अब ऐसा किसी ओर नही होता
मेरे शहर में अब शोर नही होता

अब नुक्कड़ पे मोहल्ले के लड़के नही आते
अब छतों पे सूखे हुए दुपट्टे नही लहराते
पहले गूँजती थी नज़रों की गुफ्तगू चार सु
पर अब ऐसा मन किशोर नही होता
मेरे शहर में अब शोर नही होता

अब बाज़ारों में खरीद खरीदार नही आया करते
अब द्वार पे बड़े बुजुर्ग नही बतियाया करते
पहले लगते थे खूब दीवाली दशहरे पे मेले
पर अब ऐसा किसी छोर नही होता
मेरे शहर में अब शोर नही होता

अब बारिशें दीवारों के रंग नही बहा ले जातीं
अब हवाएँ पत्तों के संग नही मुस्कुरातीं
पहले चहकती थी सावन के झूलों पे किल्कारियाँ
पर अब ऐसा किसी भोर नही होता
मेरे शहर में अब शोर नही होता

अब बस मिट्टी में घुलती बू सूँघाई देती है
अब बस अधमरी इमारतों की चीखें सुनाई देती हैं
पहले थे कई रंग ओर बातें मेरे शहर की मशहूर
पर अब बस एक किस्सा चारों ओर होता है
मेरे शहर का सन्नाटा शोर होता है

3 comments:

this is great,its so graphic, literally pictured. well written :) no words to expressed. I could see so many cities picture of recent times :|

 

wow... awesome.. i just could see aap ka shehar... loud and clear :)

 

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