The 25th Hour

..After Night Before Dawn

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मेरी ख्वाहिशें




कुछ काँटों के बिछौने हैं,
जिनपे नंगे पाँव मेरी ख्वाहिशें चलती हैं.

जब छोटी थी ख्वाहिशें,
और कोमल थी एडियाँ,
बिछौना भी हरा रहता था,
हरे नर्म काँटे जो,
एडियों तले डब जाते,
गुदगुदी लगाते,
और मेरी ख्वाहिशें हसती खेलतीं,
नंगे पाँव इनपे चलती थीं।

वक़्त गुज़रा तो सालों की समझ में,
परत बा परत सख़्त हुई मेरी एडियाँ,
काँटों ने भी मुड़ना छोड़ दिया,
ख्वाहिशें मगर और फैलीं,
सूखे काँटों पे नंगे पाँव दौड़ी,
वो बिछौना भी ज़िद मे बढ़ा जाता है,
एडियों सा ही सख़्त हुआ जाता है।

कुछ साल बाद लगता है,
एक काँटों का बिछौना होगा,
जिसपे खून में लिपटी मेरी ख्वाहिशें खड़ी मिलेंगी।

आज, कुछ काँटों के बिछौने हैं,
जिनपे नंगे पाँव मेरी ख्वाहिशें चलती हैं.

मेरे शहर में अब शोर नही होता


मेरे शहर में अब शोर नही होता

अब बच्चे गलियों में खेला नही करते
अब घरों के शीशे टूटा नही करते
पहले आती थीं माओं की डाँटने की आवाज़
पर अब ऐसा किसी ओर नही होता
मेरे शहर में अब शोर नही होता

अब नुक्कड़ पे मोहल्ले के लड़के नही आते
अब छतों पे सूखे हुए दुपट्टे नही लहराते
पहले गूँजती थी नज़रों की गुफ्तगू चार सु
पर अब ऐसा मन किशोर नही होता
मेरे शहर में अब शोर नही होता

अब बाज़ारों में खरीद खरीदार नही आया करते
अब द्वार पे बड़े बुजुर्ग नही बतियाया करते
पहले लगते थे खूब दीवाली दशहरे पे मेले
पर अब ऐसा किसी छोर नही होता
मेरे शहर में अब शोर नही होता

अब बारिशें दीवारों के रंग नही बहा ले जातीं
अब हवाएँ पत्तों के संग नही मुस्कुरातीं
पहले चहकती थी सावन के झूलों पे किल्कारियाँ
पर अब ऐसा किसी भोर नही होता
मेरे शहर में अब शोर नही होता

अब बस मिट्टी में घुलती बू सूँघाई देती है
अब बस अधमरी इमारतों की चीखें सुनाई देती हैं
पहले थे कई रंग ओर बातें मेरे शहर की मशहूर
पर अब बस एक किस्सा चारों ओर होता है
मेरे शहर का सन्नाटा शोर होता है